मैं और मेरी अंतरात्मा
मैं और मेरी अंतरात्मा
जब भी खुद से खुद को मिलाना चाहता हूं
घर के दरवाजे करके बंद एकांत में चला जाता हूं
झांकता हूं जब भीतर, एक अजनबी को वहां पाता हूं
वो मुखर नही, है बहुत शांत, समझ नही पाता हूं।
लगता है मेरे भीतर भी एक और शख्स बसता है
कभी जाना सा कभी अनजान बहुत लगता है
वो जो हमेशा मुझे समझाता नही थकता है
तू काहे जिंदगी को इतना आसान समझता है।
समझता है सबको खुद अपने जैसा ही
नही जानता क्या, ये दुनिया है कैसी
जब तक मतलब होगा तुझसे यारी निभाएंगे
फिर छोड़ तुझको नया जहां बसाएंगे।
ले जायेंगे ईट ईट उजड़े आशियाने से
मिटा देंगे नामो निशां तेरा इस जमाने से
तेरा जिक्र भी न होगा उस महफिल में
पियें जाम जितने भी तेरे बारदाने में।
अब भी संभल जा सुधर जा वक्त है प्यारे
क्या तब मानेगा जब दिल के टुकड़े होंगे सारे
फिर न दोष मुझको देना, के आगाह न किया था
दुनिया के लोगों का तुझको थाह न दिया था।।
आभार – नवीन पहल – २९.१०.२०२१ 🌹💐😎🙏
Zakirhusain Abbas Chougule
30-Oct-2021 01:29 PM
Nice
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नवीन पहल भटनागर
30-Oct-2021 07:19 PM
शुक्रिया जाकिर जी
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Niraj Pandey
29-Oct-2021 03:59 PM
वाह बहुत खूब
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नवीन पहल भटनागर
30-Oct-2021 07:19 PM
शुक्रिया जी
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Ramsewak gupta
29-Oct-2021 01:43 PM
Very good
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नवीन पहल भटनागर
29-Oct-2021 02:29 PM
धन्यवाद जी
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